Monday, September 14, 2009

How did i find a lost Delhi in J.N.U?

How did i find a lost Dehi in J.N.U a symbolic poem
on Delhi titled "lost delhi(खोई हुई दिल्ली) or
Delhi flew with heart (दिल्ली दिल ले गई)" written by me.


क्या पता वह कहाँ खो गई
दिल्ली तो दिल मेरा ले गई
मुझको तनहा यहाँ कर गई
दिल्ली तो दिल मेरा ले गयी


पहले पिर्या, फिर लौटा तो S.N. गया
लोधी गार्डन से C.P. और फिर लाल किला
हर तरफ़ एक खामोश माहौल था
वह समां तो बड़ा यारों अनमोल था
फिर भी उसका पता चला
ख़ुद पे मैं ताब ला सका
अश्क अंकों से बहता हुवा
सीने में दिल धड़कता हुवा
मेरी यादों का गुलशन मुझे
लग रहा था झुलसता हुवा
जिंदगी तू ये क्या कर गई
दिल्ली तो दिल मेरा ले गई

मेरे बस में नहीं था मेरा तन-व्-मन
फिर भी छोड़ा नहीं मैं, मुग़ल गार्डन
D.U. हमदर्द और जामिया मिल्लिया
मदरसा, लोटस टेम्पल भी चेक कर लिया
अब कहाँ जाऊं मौला मेरे
टूटे ये प्यार के सिलसिले
कोई उम्मीद अब रही
सारी बातें हुईं अनकही
मुश्किलों में मेरी रखती थी
दिल के ज़ख्मों पे मरहम वही
अब तो बस इक जगह रह गई
दिल्ली तो दिल मेरा ले गई

ख़ुद पे क़ाबू मुझे जब नहीं रह गया
होके मजबूर फिर जे.एन.यूं मैं गया
गंगा ढाबे, पे घंटों गुज़ार के
सीधा निकला हूँ मैं P.S.R पे
तब मेरी लोटरी लग गई
राक पे बैठी वह दिख गई
प्यार से मुस्कुराती हुई
इक ग़ज़ल गुनगुनाती रही
मेरी बाँहों से आकर लगी
शर्म से सर झुकाती हुई
मेरी मंजिल मुझे मिल गई
दिल्ली तो दिल मेरा ले गई

wasi bastavi

Friday, September 4, 2009

मेरा हिन्दुस्तान a song on India with the title (Mera Hindustan) originally published on vikas's blog, by me



जहाँ हर चीज है प्यारी
सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है
वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ फूलों का बिस्तर है
जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहां सूरज की थाली है
जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

कही पे नदियाँ बलखाएं
कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

कहीं गलियों में भंगड़ा है
कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां :D

वसी बस्तवी